बच्चा काला क्यों होता है
गर्भ में पल रहे शिशु का रंग शरीर में मौजूद मेलेनिन पर निर्भर करता है। मेलेनिन शरीर में मौजूद एक प्रोटीन होता है जो कि बाल,त्वचा और आंखों के रंग को निर्धारित करता है जिसके कारण शरीर में जितना ज्यादा मेलेनिन होगा, उसका रंग उतना ही डार्क होता है।
मेलेनिन कई तरह के सेल्स के समूह से बना होता है। धूप के संपर्क में आने पर यह सेल्स विकसित होने लगते हैं। इसी कारण अधिक समय तक धूप में रहने से त्वचा का रंग काला हो जाता है।
मेलेनिन के अलावा माता-पिता के जीन्स पर भी शिशु का रंग निर्भर करता है। गर्भवती महिला का खानपान भी शिशु के रंग को निर्धारित करता है।
गर्भावस्था के दौरान आयरन लेना बहुत जरूरी होता है। आयरन शरीर में खून की कमी को पूरा करता है और गर्भ में शिशु के विकास में सहायता करता है। लेकिन अगर आप आयरन की बहुत अधिक मात्रा का सेवन करते हैं तो आपकी शिशु का रंग डार्क हो सकता है।
अंडे का पीला भाग, सालमन मछली, पालक, गाजर, टमाटर, अखरोट, स्ट्रॉबेरी, गुड, मूंगफली, चुकंदर , अंगूर कीवि में भरपूर मात्रा में आयरन मौजूद होता है।
यह चीजें गर्भावस्था में सेहत के लिए बहुत ही जरूरी होती है। इन चीजों के सेवन से बच्चों के कलर में बदलाव आ सकता है, लेकिन इसे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ताl
अगर आपका बच्चा थोड़ा काला भी होता है तो क्या फर्क पड़ता है | काले बच्चे भी सुंदर दिखते हैंl रंग का व्यक्ति के जीवन पर कोई भी असर नहीं पड़ता है इसलिए गर्भावस्था में बच्चे के रंग के बारे में सोचना छोड़ दें और अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखें और अपना बच्चा चाहे जैसा भी हो उसे ढेर सारा प्यार दे।
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